Startup Related Words Means Hindi : स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं, तो पहले B to B और B to C बिजनेस जैसे शब्दों का मतलब समझ लीजिए

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Startup Related Words Means Hindi by ultimateguider

वर्तमान समय में युवाओं के मुंह से एक शब्द जरूर सुनने को मिलता हैं। स्टार्टअप !

आपने भी एक शब्द बहुत सुना होगा। इस शब्द का मतलब होता हैं। किसी नए बिजनेस या काम की शुरुआत करना।

कोरोना काल के बाद देश में जॉब्स का स्तर लगातार गिरता जा रहा हैं। जिसके कारण अब युवा अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्टार्टअप की और काफी ध्यान दें रहे हैं । मार्केट में Startup से संबंधित ऐसे अनेकों शब्द हैं। जिनके बारें में बहुत कम लोगों को सही जानकारी हैं।

ऐसे में अगर आप स्टार्टअप करना चाहते हैं तो आपको उन शब्दों के बारें में जरूर पता होना चाहिए। इस लेख में हम आपको Startup से जुड़े A से Z तक के सभी शब्दों के बारें में जानकारी देने वाले हैं। इसलिए इस लेख को अंत तक पढ़ें। Startup Related Words Means Hindi

देश में अब रोजगार की दर को बढ़ाने के लिए सरकार भी अब स्टार्टअप पर काफी ध्यान दें रही हैं।

सरकार देश में स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए कुछ योजनाए भी लांच की है। जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति बिजनेस लोन लेकर खुद का स्टार्टअप शुरू कर सकता हैं। जैसे की स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा लोन योजना इत्यादि।

इंडिया में पहली बार स्टार्टअप फन्डिंग शो शार्क टैंक इंडिया। भी टीवी का प्रसारित किया जा रहा हैं। जिसमे लोग अपने नए नए प्रकार के बिजनेस आइडिया लेकर आते हैं।

वे अपने आइडिया को शार्क टैंक के जज के सामने रखकर उन्हे अपने बिजनेस में इन्वेस्ट करने के लिए कान्वेंस करते हैं। अगर शो के जजों को उनका आइडिया पसंद आता हैं तो फिर वे उनके बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए इन्वेस्टमेंट करते हैं।

शार्क टैंक इंडिया। शुरू होने के बाद देश में अब स्टार्टअप को लेकर लोगों के अंदर कुछ अलग करने की इच्छा जाग्रत हो रही हैं। युवाओं का नौकरी वाला माइंड बदल रहा हैं।
जहा पहले पढ़ाई करने के बाद ज्यादातर युवा नौकरी की तलाश करते थे। अब वे पढ़ाई करने के बाद खुद का स्टार्टअप करने की सोच रहे हैं।

स्टार्टअप से जुड़े हुए शब्द Startup Related Words Means Hindi

अगर आप भी उन्ही युवाओ में से एक हैं जो स्टार्टअप करने की प्लानिंग बना रहे हैं। तो आपको स्टार्टअप और फाइनेंस से जुड़े हुए कुछ शब्दों के बारें में जरूर पता होना चाहिए।

बी टू बी बिजनेस ( B to B Business )

B to B Business का मतलब बिजनेस टू बिजनेस।

इसे हम एक उदाहरण से समझते है।

अगर कोई कंपनी प्रोडक्ट या सर्विस को डायरेक्ट कस्टमर को न बेचकर किसी थोक विक्रेता को सेल करती हैं। तो इसे कम बी टू बी बिजनेस कह सकते हैं।

जैसे इंडियामार्ट , exportindia अपने प्रोडक्ट किसी कस्टमर को न बेचकर थोक विक्रेता को सेल करता हैं।

बी टू सी बिजनेस ( B to C Business )

B to C Business का मतलब बिजनेस टू कंज्यूमर या कस्टमर

इसे हम उदाहरण से समझते हैं। अगर कोई कंपनी या फर्म अपने प्रोडक्ट या सर्विस डायरेक्ट अपने कस्टमर को बेचती हैं। तो इसे हम बी टू सी बिजनेस मॉडल कहते हैं।

जैसे ऐमजॉन , फ्लिपकार्ट अपने प्रोडक्ट सीधे कस्टमर तक पहुंचाते हैं।

वैल्यूएशन (Valuation)

बिजनेस या कंपनी की इकोनॉमी वैल्यू को निकालना ही वैल्यूएशन कहलाता है।

इससे आप समझ सकते हैं। वर्तमान समय में अगर इस कंपनी को सेल किया जाए तो इसकी कीमत क्या होने वाली हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर आप अपने घर का कोई सामान या घर सेल करना चाहते हो तो उसकी क्वालिटी और लोकेशन देखकर उसकी कीमत तय होती हैं। उसके बाद फाइनल वैल्यूएशन तय होने के बाद ही सामान को सेल किया जाता हैं।

वैल्यूएशन शब्द का इस्तेमाल अक्सर किसी कंपनी को बेचने के लिए, पार्टनरशिप या ओनरशिप के लिये या टैक्सेशन के दौरान किया जाता हैं।

प्री- रेवेन्यू (Pre Revenue)

प्री रेवेन्यू शब्द का स्टार्टअप की भाषा में मतलब होता हैं की आप अपने बिजनेस लगभग कितना कमा लेते हो।

मार्जिन (Margin)

प्रोडक्ट बनाने की कीमत और उसे बेचने के बाद मिलने वाले प्रॉफ़िट में जो अंतर होता हैं। उसे हम मार्जिन या प्रॉफ़िट मार्जिन के नाम से जानते हैं।

उदाहरण मान लीजिए किसी कंपनी को बिस्कित बनाकर उसे पेक करके डिलीवर करने तक सभी में 5 रुपये की लागत आती हैं। और कंपनी उस बिस्किट को 10 रुपये में सेल करती हैं। तो यहा पर कंपनी का प्रॉफ़िट मार्जिन 50 % हैं।

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इक्विटी (Equity)

अगर कोई इन्वेस्टर आपकी कंपनी में कुछ हिस्सेदारी लेकर इन्वेस्ट करता हैं तो इसे इक्विटी कहते हैं।

आपने शार्क टैंक इंडिया में देखा होगा कि जब कोई शार्क किसी व्यक्ति के बिजनेस आइडिया से संतुष्ट हो जाता हैं वे अक्सर कहते हुए सुने जाते हैं। हम आपको इतने लाख या करोड़ रुपये देंगे लेकिन बदलें में हमे आपके बिजनेस की 5 फीसदी , 10 फीसदी या बीस फीसदी इक्विटी ( हिस्सेदारी ) चाहिए।

माल लीजिए अगर कोई व्यक्ति किसी को बोल रहा हैं आप मेरे बिजनेस में 50 लाख रुपये इन्वेस्ट कर दो मैं आपको 5 फीसदी इक्विटी दूंगा। इसका मतलब हैं आपको उसके बिजनेस में 5 फीसदी हिस्सेदारी मिल रही हैं।

एंटरप्रेन्योर (Entrepreneur)

एंटरप्रेन्योर उन लोगों को कहा जाता हैं जो खुद का कोई भी स्टार्टअप कर रहे हैं। जिसमें वे उस स्टार्टअप का फायदे से लेकर नुकसान तक सभी हैंडल करने को पूरी तरह से तैयार हो। उन्हे हम एंटरप्रेन्योर कह सकते हैं।

आजकल मार्केट में ये शब्द युवाओं को मुह से काफी सुनने को मिलता हैं की में एंटरप्रेन्योर बनना चाहता हु।

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एंजेल इन्वेस्टर (Angel Investor)

जिन छोटे स्टार्टअप या एंटरप्रेन्योर में इन्वेस्ट इन्वेस्ट करते हैं। ऐसे इन्वेस्टर्स को प्राइवेट इन्वेस्टर, सीड इन्वेस्टर और एंजेल फंडर के नाम से भी जाना जाता हैं।

एंजेल इन्वेस्टर ज्यादातर आपके परिवार या मित्र हो सकते हैं। जो आपके बिजनेस में इन्वेस्ट करके पार्टनरशिप करते हैं।

ऐंजल इन्वेस्टर किसी कंपनी या स्टार्टअप में शुरुआत में भी इन्वेस्ट करते हैं ताकि स्टार्टअप शुरुआती समस्याओ से उभर कर अपने बिजनेस को बढ़ा सकें।

ओवरहेड(Overhead)

ओवरहेड के अंतर्गत प्रोडक्ट तैयार होने के बाद दूसरे खर्चे आते हैं जैसे की गोदाम का किराया, ऑफिस का रेंट,किसी की लीगल फीस या कोई इंश्योरेंस ये सभी खर्चे ओवरहेड के अंतर्गत आती हैं।

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रॉयल्टी (Royalty)

रॉयल्टी को हम ऐसे समझते हैं। मान लीजिए आपने कोई प्रोडक्ट तैयार करके उसे पेटेंट करवाया। उस प्रोडक्ट का कॉपीराइट, लोगो, ट्रेडमार्क सब कुछ आपका है। लेकिन अब इस प्रोडक्ट को कोई थर्ड पार्टी सेल करना चाहती हैं। तो उस थर्ड पार्टी पर्सन को आपका प्रोडक्ट सेल करने के लिए उसे प्रोडक्ट के सेल प्राइस में से कुछ हिस्सा प्रोडक्ट कंपनी को देना होगा।रॉयल्टी कहते हैं।

स्केलेबिलिटी (Scalability)

अगर आपने कोई स्टार्टअप शुरू किया हैं। इस बिजनेस में आपकी कितनी ग्रोथ होगी। आपके प्रोडक्ट की बिक्री कितनी हो सकती हैं । प्रॉफ़िट कितना होगा। ग्राहकों की डिमांड कितनी पूरी होगी। ये सभी बाते बिजनेस की स्केलेबिलिटी से तय की जाती हैं।

परचेज ऑर्डर (Purchase order (PO)

परचेज ऑर्डर का आसान भाषा में मतलब होता हैं..एग्रीमेंट।

कोई प्रोडक्ट तैयार करने के बाद सामने वाला व्यक्ति आपसे कितने पैसों में आपके कितने प्रोडक्ट खरीदेगा। इसका एग्रीमेंट लिया जाता हैं। इस टर्म का इस्तेमाल ज्यादातर आपने रियल एस्टेट में किया जाता हैं।

इसे भी जरूर पढे : एफिलिएट मार्केटिंग क्या है । एफिलिएट मार्केटिंग बिजनेस कैसे शुरू करें।

पेटेंट(Patent)

पेटेंट का मतलब है प्रोडक्ट तैयार करने बाद उस पर अपने नाम या कंपनी की मोहर लगाना।

उदाहरण के तौर पर आपने किसी नए प्रोडक्ट का आविष्कार किया। आपने उस आविष्कार को अपने नाम से पेटेंट करवा लिया हैं। अब इस प्रोडक्ट को कोई भी दूसरा व्यक्ति तब तक नहीं सेल कर सकता जब तक आप उसे परमिशन न दो। आपनी परमिशन के बिना कोई भी व्यक्ति उस प्रोडक्ट की कॉपी भी नहीं निकाल सकता हैं। अगर कोई ऐसा करता हैं तो आप उस पर कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।

ट्रेडमार्क (Trademark)

मार्केट मे एक तरह के अनेकों प्रोडक्ट होते हैं। यानी की एक ही प्रोडक्ट को अलग अलग कंपनी बनाती हैं। लेकिन कौन सा प्रोडक्ट किस कंपनी का हैं। इसकी पहचान प्रोडक्ट पर मौजूद के ट्रेडमार्क यानी की लोगों से होती हैं ।

जैसे की एप्पल की पहचान कटे हुए सेब से होती हैं। इस तरह हर कंपनी का एक युनीक ट्रेडमार्क होता हैं। जिसका इस्तेमाल केवल वही कंपनी कर सकती हैं। जिसने उसे पहले रजिस्टर्ड करवाया हुआ हैं।

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कॉपीराइट(Copyright)

कॉपीराइट का मतलब भी पेटेंट या ट्रेडमार्क से मिलता जुलता ही हैं। जैसे आपने किसी टॉपिक या फिल्म बनाई या कोई बुक लिखी तो उस फिल्म या बुक का कंटेन्ट आपका हैं। कोई भी दूसरा व्यक्ति आपकी परमिशन के बिना इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता हैं।

परपिटुइटी(Perpetuity

परपिटुइटी को आसान भाषा में समझते हैं।

मान लीजिए आपने कोई बुक लिखी। अब उस बुक को पब्लिश करने वाला पब्लिकेशन आपको कहता हैं कि एक बुक की प्रति बिकने पर 100 रुपए रॉयल्टी परपिटुइटी में लेंगे। मतलब की दुनिया में जब तक आपकी बुक की कॉपी बिकती रहेगी आपको तब तक उस बुक के 100 रुपये प्रति पीस के हिसाब से मिलते रहेंगे।

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